Tuesday, 28 July 2015

कर्ण पिशाचिनी - सिद्धि



कर्ण पिशाचिनी साधना यह एक गुप्त त्रिकालदर्शी साधना है. नीचे दिया गया मंत्र कर्ण पिशाचिनी को जाग्रत कर देगा और फिर साधक पिशाचिनी से अपना मूह-माँगा वरदान पा सकेगा. एक बार इस मंत्र की सिद्धि पाने के बाद साधक कोई भी चीज़, इच्छा या वस्तु को पिशाचिनी की कृपा से पा सकेगा. साधक को भविष्य में होने वाली घटनाओं का ज्ञान हो सकेगा

कर्ण पिशाचिनी साधक के कानों में भविष्य में होने वाली घटनाओं को बता देगी या साधक के किसी भी प्रशन का उत्तर कान में आकर बोल देगी और साधक त्रिकालदर्शी हो जाएगा.
कर्ण पिशाचिनी की साधना का मंत्र नीचे दिया गया है

लिंग सर्वनाम शक्ति भगवती कर्ण-पिशाचिनी चड रुपी सच-सच मम वचन दे स्वाहा.

मंत्र को साधने की विधि इस प्रकार है

किसी भी नवरात्र में भूत-शुद्धि, स्थान-शुद्धि, गुरु स्मरण, गणेश पूजन, नवग्रह पूजन से पूर्व एक चौकी पर साफ़ लाल कपडा बिछाएं. उस पर ताम्बे का एक लोटा स्थापित करें. कलश पर एक सूखा नारियल रखें. कलश के चारों ओर पान, सिन्दूर, दो लड्डू, एक कटा हुआ मुर्गा, एक लोटे में मुर्गे का खून रखें. कलश पूजन कर, समस्त सामग्री के चारों तरफ मुर्गे के खून से स्तंभित करें. इसके बाद कंधे पर लाल कपडा रख कर उपरोक्त दिए गए मंत्र का जाप करें. रोजाना एक हज़ार बार उपरोक्त मंत्र का जाप नौ दिन तक करें और दसवें दिन, एक हज़ार मन्त्रों का जाप किसी शमशान या कब्रिस्तान में करें.

दसवें दिन का जाप समाप्त होते ही कर्ण पिशाचिनी साक्षात रूप में दर्शन देगी. साधक और पिशाचिनी आपस में बात करके किसी निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं और उसके बाद जो भी शर्तें रखी जायेंगी, उसके हिसाब से साधक और पिशाचिनी एक साथ रहेंगे और ये साथ साधक के जीवन-पर्यन्त रहेगा और साधक की मृत्यु के साथ समाप्त हो जायेगा.


साधक को सलाह दी जाती है की पिशाचिनी के साथ शर्तें मानने से पहले, ध्यान से सोच ले, क्यूंकि एक बार शर्तों का फैसला होने के बाद उनको पलटना संभव नहीं होगा.”

**यह जानकारी केवल जिज्ञासु पाठकों के लिए दी गयी है. इस प्रक्रिया को बिना सोचे समझे न करें.

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