हिन्दू मान्यता अनुसार अभी कल्कि भगवान् का अवतार होना है, लेकिन अभी से उनकी पूजा अर्चना शुरू हो चुकी है. यह आज या कल की बात नहीं है बल्कि करीब पौने तीन सौ सालों से उनकी पूजा जारी है.
भगवान् कल्कि का अवतार कलयुग के समापन के लिए होगा और भगवान् कल्कि, कलि नामक दानव का संघार करके सतयुग की स्थापना करेंगे. यही बात कल्कि पुराण में भी बताई गयी है और इसी बात का उल्लेख श्री विक्रांत शुक्ला के ग्रन्थ - इन लार्ड कृष्णा'स कोर्ट: आफ्टर डेथ, में भी किया गया है.
राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात की त्रिवेणी संगम स्थल राजस्थान के वांगद अंचल के डूंगरपुर जिले के साबला गाँव में हरी मंदिर है, जहां श्री कल्कि भगवान् को पूजा जाता है,
हरी मंदिर के गर्भग्रह में श्याम रंग की अश्व पर सवार मूर्ती है, जो लाखों भक्तों की श्रद्धा और विश्वास का केंद्र है. भगवान् के भावी अवतार श्री कल्कि महाराज की यह मूर्ती घोड़े पर सवार है. इस घोड़े के तीन पैर भूमि पर टिके हुए हैं जबकि एक पैर सतह से थोड़ा ऊंचा है. मान्यता यह है की यह पैर धीरे-धीरे भूमि की ओर झुकने लगा है. जब यह पैर पूरी तरह से भूमि पर टिक जाएगा, तब दुनिया में परिवर्तन का दौर प्रारंभ हो जाएगा. श्री विक्रांत शुक्ला जी के ग्रन्थ में कल्कि सम्बंधित चीज़ों का विस्तार से उल्लेख किया गया है.
कल्कि संस्थान अपने लक्ष्य को लेकर कटिबद्ध है और सब भक्तों के सहयोग से आगे बढ़ने का विश्वास है.
जय श्री कृष्णा! जय श्री कल्कि भगवान्!!!
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